मक्या की पेरी रोटी प
भेदरा की चटनीसी माय।
गोबर पानी कपड़ा-लत्ता
झाड़ू पोछा जसी माय।
टूटी फूटी खाट प सुवय
हाथ सिराना लेख माय।
आधी सुवय आधी जागय
हर आरा प उठय माय।
सांझ सबेरे पनघट पानी
सांझ सबेरे चूल्हा माय।
सबक्ख अच्छो खाना देय
रूखो सूखो खाय माय।
घर म जब बीमार है कुई
डाक्टर नर्स दाई माय।
घर अउर खेत दुही जघा
दिन भर खुटती रव्हय माय।
गाय बइल अउर बेटा-बेटी
सबकी चिंता करय माय।
घट्टी दापका,कोदो कुटकी
धान जसी पिसाय माय।
दिन भर भी फुर्सत नी ओख
अउत का पाछ फिरय माय।
बेटा- बेटी साई खेत म
एक-एक दाना बुवय माय।
नींदय खुरपय फसल देखय
देख- देख हर्षावय माय।
काटय-उठावय,दावन करय
दुख भूसा सी उड़ावय माय।
-वल्लभ डोंगरे
भेदरा की चटनीसी माय।
गोबर पानी कपड़ा-लत्ता
झाड़ू पोछा जसी माय।
टूटी फूटी खाट प सुवय
हाथ सिराना लेख माय।
आधी सुवय आधी जागय
हर आरा प उठय माय।
सांझ सबेरे पनघट पानी
सांझ सबेरे चूल्हा माय।
सबक्ख अच्छो खाना देय
रूखो सूखो खाय माय।
घर म जब बीमार है कुई
डाक्टर नर्स दाई माय।
घर अउर खेत दुही जघा
दिन भर खुटती रव्हय माय।
गाय बइल अउर बेटा-बेटी
सबकी चिंता करय माय।
घट्टी दापका,कोदो कुटकी
धान जसी पिसाय माय।
दिन भर भी फुर्सत नी ओख
अउत का पाछ फिरय माय।
बेटा- बेटी साई खेत म
एक-एक दाना बुवय माय।
नींदय खुरपय फसल देखय
देख- देख हर्षावय माय।
काटय-उठावय,दावन करय
दुख भूसा सी उड़ावय माय।
-वल्लभ डोंगरे
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