Friday, March 14, 2014

माय

मक्या की  पेरी  रोटी प
भेदरा की चटनीसी माय।

गोबर पानी कपड़ा-लत्ता
झाड़ू पोछा जसी  माय।
टूटी फूटी खाट प सुवय
हाथ सिराना लेख माय।

आधी सुवय आधी जागय
हर आरा प उठय माय।
सांझ सबेरे पनघट पानी
सांझ  सबेरे चूल्हा माय।

सबक्ख अच्छो खाना देय
रूखो  सूखो खाय  माय।
घर म जब बीमार है कुई
डाक्टर  नर्स  दाई माय।

घर अउर खेत दुही जघा
दिन भर खुटती रव्हय माय।
गाय बइल अउर बेटा-बेटी
सबकी  चिंता करय माय।

घट्टी दापका,कोदो कुटकी
धान जसी  पिसाय माय।
दिन भर भी फुर्सत नी ओख
अउत का पाछ फिरय माय।

बेटा- बेटी  साई  खेत म
एक-एक दाना बुवय माय।
नींदय खुरपय फसल देखय
देख- देख  हर्षावय माय।

काटय-उठावय,दावन करय
दुख भूसा सी उड़ावय माय।

-वल्लभ डोंगरे

No comments:

Post a Comment