Sunday, February 23, 2014

संपादकीय : समाज को आपने क्या दिया है?

समाज के लोगों द्वारा यह कहते हुए प्रायः सुना जाता है कि समाज ने हमें क्या दिया है ? ऐसे लोग प्रायः यह भूल जाते हैं कि समाज हमसे अलग नहीं है और हम समाज से अलग नहीं हैं। हम ही समाज है और समाज भी हम ही है। जिस तरह धरती में हम बीज बोकर उसका कई गुणा धरती से प्राप्त करते हैं उसी तरह समाज को कुछ देकर ही हम उससे प्राप्त करने की उम्मीद कर सकते हैं। वास्तव में, समाज हमें वही देता है जो हम उसे देते हैं। अभी हो यह रहा है कि हम समाज को कुछ दिये बिना ही उससे सब कुछ प्राप्त करने की उम्मीद करते रहते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण भी है।

जब तक आप धरती में बीज नहीं बोयेंगे तो फसल कैसे काट पायेंगे ? बीज बोये बिना फसल काटने जायेंगे तो खेत तो बंजर ही मिलेगा न ? समाज तो धरती की तरह आपको सदैव से देता ही आया है। बस, आप उसे देख नहीं पा रहे है या आपने उसे देखने की कभी कोषिष ही नहीं की है। यह समाज का नहीं, अपितु आपका दोष है। जिस समाज में आपने जन्म लिया क्या आप इतने बड़े अपने आप हो गये ? कभी आपने सोचा है कि आपके परिजनों के अलावा कितनों ने आपको गोद में लिया है, कितनों ने आपको खिलाया है, कितनों ने आपकी गंदगी साफ की है, कितनों ने आपको नहलाया-धुलाया, खिलाया-पिलाया है, कितनों ने आपके आॅंसू पोंछे हैं, कितनों ने आपको हॅसाया है, कितनों ने आपको शाला तक जाने में साथ दिया है, कितनों ने आपको पढ़ना-लिखना सिखाया है, कितनों ने हाट-बाजार,मेले में आपका हाथ पकड़कर घुमा-फिराकर सुरक्षित घर वासप लाया है, कितनों ने आपके सुख-दुख में रात-रात भर जागकर आपको सहयोग किया है ताकि आप सो सके, कितनों ने आपको सायकल, स्कूटर, मोटरसायकल, कार आदि चलाना सीखते  समय आपके धीरे-धीरे चलाने को झेला है और जाने की जल्दी होने पर भी आपके सीखने में उनके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया गया है, आपके घर मिर्ची का तड़का लगने पर पड़ोसी को कितनी बार बिना कारण छींकना पड़ा है।

आपके घर आयोजनों में लोग कितनी दूर से अपना समय और पैसा खर्च करके आये हैं ताकि आपका कार्यक्रम सफल हो सके, समाज में आपका मान-सम्मान बना रह सके, कितनों ने आपके विवाह में उपस्थित होकर आपके सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना की है, कितनों ने आपके बच्चांे के जन्म और जन्मदिन पर उपस्थित होकर उन्हें आषीर्वाद दिया है, कितनों ने आपके घर गमी होने पर उसे श्मशान तक पहुॅचाने में आपका साथ दिया है, कितनों ने आपके इस दुख के अवसर पर अपना कामकाज छोड़कर आपके साथ पूरे 11 दिनों तक रहकर आपको संबल प्रदान किया है, कितनों ने आपके दुख के अवसर पर आपके घर चूल्हा न जलने पर अपने घर का बना हुआ खाना खिलाया है,  कितनों ने बाजार से आपका सामान लाकर आपको दिया है, कितनों ने आपके परिजनों के लिए बाजार से दवाई लाकर दी है, कितनों ने आपके परिजनों के अस्वस्थ होने पर अस्पताल में दिन और रात काटे हैं, इतना सब कुछ करने के बाद भी आप कहते हैं कि समाज ने मुझे क्या दिया ? यह तो एक तरह से समाज के प्रति घोर कृतघ्नता ही है। यदि आपमें थोड़ी भी हया और शर्म शेष है तो यह प्रष्न अपने आप से करना सीखें कि आपने अब तक समाज को क्या दिया है ?

   आज यदि समाज में अनपढ़ता है तो इसका कारण यह है कि हम पढ-लिखकर समाज की अनपढ़ता को दूर करना भूल गए। आज यदि समाज में दहेज प्रथा है तो इसका कारण यह है कि हमने भी अपने विवाह में अच्छा-खासा दहेज लिया था। आज यदि समाज का भवन नहीं है तो इसका तात्पर्य यह है कि हम अपना घर तो बनाते रहे पर कभी समाज के लिए सोचना भी उचित नहीं समझा। आज यदि समाज में बेरोजगारी है तो इसका कारण यह है कि हमने नौकरी में लगकर कभी अपने बेरोजगार भाई-बहनों की ओर झाॅेककर भी नहीं देखा। आज यदि समाज में गरीबी है तो इसका कारण यह है कि हमारे पास चार पैसे आने पर हमने कभी उसे समाज पर खर्च करना मुनासिब नहीं समझा। अच्छा पद और प्रतिष्ठा पाने पर हमने केवल अपना विकास किया और समाज की कभी सुध लेना उचित नहीं समझा। हम केवल और केवल आत्मकेन्द्रित होकर रह गये। हम यदि समाज के बारे में सोचते, समाज के विकास के बारे में सोचते या  समाज हित में कोई कारगर कदम उठाते तो आज समाज भी विकास और उन्नति की राह पर दिखाई देता, पर ऐसा नहीं हुआ। गाॅव के लोग पढ-लिखकर शहर पहुॅच गये, विदेष पहुॅंच गये पर समाज आज भी गाॅव में ही निवासरत और संघर्षरत है। सम्पूर्ण समाज की उन्नति और विकास के बिना किसी व्यक्ति विषेष की उन्नति ओैर विकास भी अधूरा ही है क्योंकि समाज का विकास एक व्यक्ति से नहीं अपितु उसके समस्त व्यक्तियों से जुड़ा होता है।

  गुजराती आज पूरे संसार में व्यवसाय कर रहे हैं। वे अपने घर और समाज से दूर रहकर भी अपने घर और समाज से कभी दूर नहीं हुए है। वे आज भी अमेरिका में नौकरी करते हुए भी अपने गाॅव के मंदिर हेतु नियमित सहयोग करते हैं, गांव  के बच्चों की उचित षिक्षा-दीक्षा हेतु कम्प्यूटर और नेट की व्यवस्था करते हैं।अपने गुरुओं को सेवानिवृत्त होने पर भी 5 सितम्बर को सम्मानीत करते हैं। अन्य प्रदेशों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत है-

तमिलनाडु-

  • चेन्नई में स्कूल के छोटे बच्चों को सड़क पार कराने के लिए समुदाय के सदस्यों द्वारा नियमित सहयोग किया जाता है।
  • प्रदेष की शालाओं में मदर्स क्लब का गठन किया गया है जो प्रतिदिन शाला में उपस्थित होकर परिसर की साफ-सफाई, टाइलेट्स की साफ-सफाई ,मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता आदि की नियमित मानीटरिंग करता है।
  • महत्वपूर्ण त्योहारों का आयोजन, खेलकूद, वार्तालाप, व्याख्यान आदि के अवसर पर समुदाय की सहभागिता सुनिष्चित कर समुदाय को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
  • बेटी बचाने के उद्देष्य से प्रदेष में कन्या शिशु  बचाओ कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

कर्नाटक-

  • कर्नाटक में बच्चों के बीच जातपाॅत की गहरी भावना पाई जाती है। ऊॅची जाति के बच्चों का नीची जाति के बच्चों के साथ न बैठने और उनके साथ खाना न खाने के चलते इस भावना को मिटाने के लिए खेल का सहारा लिया गया। आपस में खेल खेलने के लिए बच्चे सहमत हो गए और जातपात की भावना भूलाकर धीरे-धीरे वे एक दूसरे का हाथ थामकर खेल खेलने लगे।
  • कर्नाटक में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिष्चित करने के उददेष्य से ”नम्मा शाले” (समुदाय और शाला को समीप लाना) नामक कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसके माध्यम से समुदाय और शाला को समीप लाने का अनूठा प्रयास किया जा रहा है। अपने गाॅव के सरकारी स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिष्चित करने के लिए समुदाय और शाला के संयुक्त प्रयास से योजना व प्रबंधन इस तरह किया जाता है कि दोनों ही परस्पर पूरक व सहयोगी साबित हो रहे हैं। इसमें  7 प्रकार के स्टेकहोल्डर्स हैं-बच्चे, अभिभावक, शिक्षक, एसडीएमसी के सदस्य, समुदाय आधारित संगठन, ग्राम पंचायत, और षिक्षा प्रषासक जिन्हें इन्द्रधनुषीय स्टेकहोल्डर्स कहा जाता है।
  • एसएमसी के सदस्यों की उपस्थिति बढ़ाने व समुदाय की सहभागिता सुनिष्चित करने के लिए स्कूल की बैठक के पूर्व अन्य विभाग के अधिकारियों द्वारा उपयोगी जानकारी प्रदान करने से अच्छे परिणाम सामने आए हैं। जैसे-बोनी के अवसर पर किसानों को बीज व खाद की जानकारी देना।

आंध्रप्रदेश-

  • ऋषिवेली में संचालित सेटेलाइट शालाओं में षिक्षकों के साथ-साथ समुदाय के लोगों को भी बारी-बारी से अपने व्यवसाय से संबंधित जानकारी प्रदान करने के लिए अवसर प्रदान किए जाते हैं। बच्चों को अपने माता-पिता व दादा-दादी से कहानी सुनकर उसे कक्षा में सुनाने के लिए कहा जाता है जिसे बच्चे ”मेरी कहानी” के नाम से कागज पर लिखकर कक्षा में प्रदर्षित भी करते हैं।

गुजरात

  • प्रदेष में षिक्षा की गुणवत्ता सुनिष्चित करने के उद्देष्य से ”गुणोत्सव” नामक शैक्षिक कार्यक्रम वर्ष में तीन-तीन दिनों के लिए दो बार आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम के अवसर पर जनप्रतिनिधि,ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि एवं एसएमसी के सदस्यों की सहभागिता अनिवार्य होती है। परिणाम की घोषणा के अवसर पर सभी सरपंच,एसएमसी के सदस्य उपस्थित रहते हैं और अपनी अपनी शाला का परिणाम बेहतर लाने की होड़ मची होती है। बेहतर परिणाम देने वाली शाला को अनुपम शाला कहा जाता है जो उस क्षेत्र की आदर्ष शाला होती है। अनुपम शाला कहलाना ही षिक्षक व गाॅव के लोगों के लिए गौरव की बात होती है। षिक्षा में समुदाय की सहभागिता से बेहतर परिणाम लाने का यह प्रयास अनुकरणीय है।
  • बच्चों में प्रकृति व पर्यावरण के प्रति संवेदनषीलता व प्रेम विकसित करने के उद्देष्य से सभी शालाओं में अक्षयपात्र रखे जाते हैं जिनमें बच्चे अपने घर से माचिस की डिबिया भर सप्ताह में एक बार अनाज लाते हैं जिसे अक्षयपात्र में इकट्ठा किया जाता है और पक्षियों को खिलाया जाता है। यह समुदाय के सहयोग के बिना संभव नहीं है।
  • ”कन्या केलवनी रथ यात्रा”-षालाओं में बालिकाओं का शत प्रतिषत नामांकन सुनिष्चित करने के उद्देष्य से ”कन्या केलवनी रथ यात्रा” समुदाय के सक्रिय सहयोंग से  गाॅव गाॅव निकाली जाती है, जिसपर कन्याओं को बिठाया जाता है तथा कन्याओं को शाला भेजने हेतु अभिभावकों को अभिप्रेरित किया जाता है। विद्यालक्षी बांड योजना के तहत कक्षा 1 में कन्या को दर्ज करने पर बच्ची के नाम से 1000 रु जमा किए जाते हैं। प्रारंम्भिक षिक्षा पूरी करने पर ब्याज सहित राषि संबंधित पालक को दे दी जाती है।
  • पालक पिता योजना- विद्यालक्षी बांड योजना के तहत कक्षा 1 में बच्चे को दर्ज करने पर बच्चे के नाम से 1000 रु जमा किए जाते हैं। प्रारंम्भिक षिक्षा पूरी करने पर ब्याज सहित राषि संबंधित पालक को दे दी जाती है।
  • विद्यादीप योजना-षाला में दर्ज बच्चे का अकस्मात घायल होने पर रु 25,000 व उसकी मृत्यु हो जाने पर रु 50,000 की राषि पालक को सहायतार्थ प्रदान की जाती है।
  • सीडब्ल्यूएसएन बच्चों के लिए प्रोत्साहन राषि-पालक की 50,000 तक वार्षिक आय होने पर कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को  1000/- व कक्षा 9 से आगे अध्ययनरत होने पर 5000/- छात्रवृत्ति देने का प्रावधान है। रु 25,000 से कम आय होने पर रु 5000/-की राषि प्रति वर्ष ट्राइसायकल/सिलाई मषीन/कम्प्यूटर आदि खरीदने के लिए दी जाती है। 40 प्रति. से अधिक विकलांगता होने पर 17 वर्ष की उम्र तक 200/- प्रति माह व 18 से 64 वर्ष की उम्र में 400/- प्रति माह सहायता प्रदान की जाती है।
  • तिथि भोजन-समुदाय की सहभागिता सुनिष्चित करने के उद्देष्य से गुजरात के गाॅवों में तिथि भोजन का प्रचलन चल पड़ा है। प्रतिदिन किसी न किसी के घर से बच्चों के लिए भोजन पकाकर स्कूल में पहुॅचा दिया जाता है। पूरे माह भर के लिए तिथि भोजन की तिथि इच्छुक अभिभावकों से पूर्व में ही ले ली जाती है। इस तरह स्कूल के बच्चों के भोजन की व्यवस्था समुदाय की सहभागिता द्वारा सफलतापूर्वक की जा रही है।

प. बंगाल-

  • प. बंगाल में मध्याह्न भोजन हेतु जब सब्जियाॅं खरीदी जाती है तब समुदाय का सहयोग उल्लेखनीय होता है। उदाहरण के लिए-यदि मध्याह्न भोजन हेतु 40 किलो सब्जी खरीदी जाती है तो 20 किलों सब्जी का ही पैसा लेकर 20 किलो सब्जी दुकानदार द्वारा दान में दे दी जाती है। इस तरह षिक्षा में  समुदाय का सहयोग प्राप्त होता है।
  • कन्या समृद्धि योजना- कन्या समृद्धि योजना के अंतर्गत माॅं को दो बेटी के जन्म तक बेटी के जन्म पर 1500/- सहयोग राषि प्रदान की जाती है।

केरल-

  • मछली पकड़ने वाले परिवारों के बच्चों को मछुआरा छात्रवृत्ति एवं, बीड़ी बनाने वाले परिवारों के बच्चों को बीड़ी छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।

हिमाचल प्रदेश-

  • गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के बच्चों को गरीबी छात्रवृत्ति दी जाती है।
  • प्रदेष में ”बेटी है अनमोल योजना” बेटी बचाने के उद्देष्य से चलाई जा रही है।
जरूरी नहीं कि समाज को ज्यादा देने के चक्कर में हम कम देना भी भूल ही जाए। सवाल कम और ज्यादा का नहीं अपितु आपकी भावना का है। आप अपने समाज को एक रुपया देकर तो देखें, बदले में समाज आपको कितना क्या देता है आप स्वयं जान जायेंगे। यदि नहीं भी जान सके तो आपके द्वारा उठाया गया कदम उस पौधे रोपने की तरह होगा जिसके फल रोपने वाला भले ही न खा पाए पर उसके बाद की पीढ़ियाॅं उनका स्वाद जरूर चखेगी। आपका पौधे रोपना ही बहुत कारगर कदम है। आज पौधे रोपने वाले कम और फल खाने वाले ज्यादा हो गये है। इसीलिए समाज में गरीबी है, अवनति है, अविकास है। आइये, हम एक छोटी शुरुआत करके अपने समाज को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें।          

                       वल्लभ डोंगरे, भोपाल-9425392656

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