Friday, March 14, 2014

समाज साहित्य के माध्यम से जनजागृति लाता सतपुड़ा संस्कृति संस्थान

शिक्षा समाज की आंख होती है। शिक्षा से व्यक्तित्व परिस्कृत होता है। पर यदि समाज शिक्षा विहीन हो तब उसकी दीनहीनता का पता लगाना कठिन नहीं होता। एक बार एक समाज सेवी डॉक्टर समाज सुधार पर भाषण दे रहा था। वह बता रहा था कि दारू पीना शरीर के लिए कितना नुकसानदायक होता है। शराब की सारी बुराइयों को बता चुकने के बाद डॉक्टर ने दो कांच के ग्लास मॅंगाए। एक में पानी व दूसरे में शराब भरने के बाद उनमें केचुए डाल दिए गए। थोड़ी देर बाद शराब के ग्लास वाला केंचुआ मर गया व पानी के ग्लास वाला केंचुआ जिंदा निकला। इस पर डॉक्टर ने उपस्थित लोगों से पूछा-इससे आप क्या समझते हैं? तो एक शराबी बोला- दारू पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। यदि गंभीर शिक्षा देने पर भी हम इस तरह अगंभीर ही बने रहे तो कभी भी जीवन में कुछ सीख नहीं पायेंगे।

पंचतंत्र में एक कहानी का उल्लेख है। कहानी  चिड़िया और बंदर पर केन्द्रित है। ठंड की ऋतु में बंदर पेड़ के नीचे बैठा ठिठुर रहा था, जिसे देख चिड़िया बोली-तुम्हारे तो इंसानों की तरह हाथ-पैर हैं फिर भी अपना कोई घर नहीं बना पाए। मेरे तो हाथ भी नहीं है फिर भी मैंने अपना घर बना लिया है। चिड़िया की बातें सुनकर बंदर को गुस्सा आ गया। वह पेड़ पर चढ़ा और चिड़िया के घोसले को नोंच कर जमीन पर फेंक दिया। चिड़िया के अंडे-बच्चे मर गए और चिड़िया पल भर में घरविहीन हो गई। किसी को शिक्षा देने के पहले यह जानना जरूरी है कि वह पात्र है भी या नहीं। जिस तरह कुपात्र को दिया गया दान दान नहीं कहलाता उसी तरह कुपात्र को दी गई शिक्षा शिक्षा नहीं कहलाती।

कुपात्र को दी गई शिक्षा के अपने खतरे हैं। परन्तु इन खतरों को उठाए बिना समाज को षिक्षित कर पाना संभव भी नहीं है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में दो विकल्प रहते हैं। एक विकल्प उसे सामान्य व दूसरा विकल्प उसे महान बनाता है। दूसरा विकल्प चुनने वाले लोग विरले ही होते हैं। इसलिए महान बनने वाले लोग भी विरले ही होते हैं। दूसरा विकल्प चुनने वाले हट कर करने और हटकर देने वाले होते हैं इसलिए समाज इन्हें सदैव याद रखता है।

एक जापानी कम्पनी ने अपने दो आदमियों को अफ्रीका में जूतों की बिक्री हेतु बाजार की संभावनाओं को तलाषने हेतु भेजा। एक आदमी ने तीन दिन में कम्पनी को रिपोर्ट भेजी कि यहां कोई जूते ही नहीं पहनता, अतः यहां जूतों की बिक्री की कल्पना करना भी बेकार है।दूसरे आदमी ने एक माह तक बाजार की संभावनाओं को लेकर अपनी तलाष जारी रखी और अंततः रिपोर्ट भेजी कि यहां कोई जूते नहीं पहनता अतः यहां तो बाजार ही बाजार है। दूसरे आदमी की तरह सतपुड़ा संस्कृति संस्थान,भोपाल  ने भी अपना कार्य जारी रखा और अशिक्षित और अनपढ़ पवारों में समाज साहित्य के माध्यम से जनजागृति लाने का प्रयास जारी रखा। जो कार्य कोई संगठन नहीं कर सका उस कार्य को करने का बीड़ा उठाकर सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ने जापानी कम्पनी के दूसरे व्यक्ति की तरह ही धैर्य का परिचय दिया है। 21 वीं सदी में भी इस समाज में करने को इतना कुछ है कि एक पूरी की पूरी सदी इसके विकास और उन्नति के लिए कम पड़ जाएगी।

पिछले दिनों मंडीदीप श्रीराम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम व भंडारे का आयोजन था जिसमें सहभागिता करने हेतु 15,000 से ज्यादा समाज सदस्यों को एसएमएस के माध्यम से अनुरोध किया गया था जिसमें से 15 लोगों ने भी जवाब देना उचित नहीं समझा। राजधानी में ही समाज के लगभग 2000 सदस्य हैं जिनमें से 200 सदस्यों का भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचना हमारी घृणित सोच और गंदी मानसिकता का प्रतीक है। इसी तरह विवाह योग्य सदस्यों की जानकारी संकलित करने हेतु 200 लोगों को फोन करने पर मात्र 1 या 2 सदस्यों से जानकारी प्राप्त हो पाती है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जानकारी संकलित करना कितना दुरूह कार्य है। सुखवाड़ा ई मासिक पत्रिका लोग नेट से डाउनलोड करके उसमें संकलित जानकारी के आधार पर अपना स्वार्थ साध लेते हैं पर कभी धन्यवाद देने की जहमत नहीं उठाते। 24 अक्टूबर को पूरे विश्व में माफी दिवस मनाया जाता है। जैन धर्म में तो एक क्षमा पर्व ही है। हम कम से कम साल में एक बार इस तरह की सुविधा मुहैया कराने वालों के प्रति अपनी कृतज्ञता तो ज्ञापित कर ही सकते हैं। पर हममें ये संस्कार ही नहीं है वरना इस तरह के कार्य करने वालों के प्रति सम्मान और प्रेम की गंगा बहाने में कोई भी समाज कोताही नहीं बरतता। आज भी समाज संगठनों के निमंत्रण पत्रों में इस तरह के लोगों के लिए स्थान सुरक्षित न रखना एक तरह से समाज की सड़ी गली मानसिकता का ही प्रमाण है।

- वल्लभ डोंगरे 

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