Friday, March 14, 2014

समाज और संसार को सहयोग

 एक समाज सदस्य को किया गया सहयोग उस सदस्य विशेष तक सीमित न रहकर वह परिवार, समुदाय,  समाज, राष्ट्र व संसार तक पहुंचता है। आजादी की जंग में गांधीजी को किया गया सहयोग पूरे देश को आजाद कराने में काम आता है। कण-कण में भगवान होने की बात स्वीकारने और मानने वाले देश में व्यक्ति में भगवान देखने और स्वीकारने की हिम्मत जुटाने की अभी और जरूरत है। पत्थर को भगवान मानने में हमें कोई दिक्कत महसूस नहीं होती पर जब किसी इंसान को भगवान मानने की बात आती है तो हमारा अंहकार आड़े आ जाता है। किसी की अच्छाइयां भी हमें हजम नहीं हो पाती।

किसी का बिना दहेज लिए विवाह करना भी हमें फूटी आंखों नहीं सुहाता क्योंकि वैसा साहस दिखा पाने का या तो हम अवसर खो चुके होते हैं या फिर वैसा साहस दिखाने का हम में दमखम नहीं होता हैं, और वैसा साहस दिखाने के स्थान पर उसका विरोध करना हमें ज्यादा आसान और फायदेमंद लगता है। इसी तरह एक समाज सदस्य को किया गया असहयोग उस सदस्य विषेश तक सीमित न रहकर वह परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र व संसार के लिए असहयोग हो जाता है और इससे केवल उस सदस्य विशेष का ही नहीं अपितु पूरे परिवार, पूरे समुदाय, पूरे समाज, पूरे राष्ट्र और पूरे संसार का विकास अवरूद्ध हो जाता है। जिस तरह व्यक्ति-व्यक्ति की आय जुड़कर राष्ट्र की आय बनती है, उसी तरह व्यक्ति-व्यक्ति का कार्य जुड़कर समाज का कार्य बनता है। वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति वाले समाज और देश में कुटुम्ब के लोगों को ही सहयोग न करके हम वसुधैव कुटुम्बकम् की महान् संस्कृति को केवल बातों के बल पर न तो जिंदा रख सकते हैं न ही आगे बढ़ा सकते हैं।

बोहरा समाज में अपने समाज सदस्य को हर तरह का सहयोग किया जाता है ताकि वह समाज की मुख्य धारा से जुड सके। बोहरा समाज में अपने समाज सदस्य को दुकान खोलने हेतु न केवल आर्थिक सहयोग दिया जाता है अपितु उसी की दुकान से सामान खरीदने हेतु समाज सदस्यों को फरमान भी जारी किया जाता है। इस तरह लिए गए निर्णय का हर सदस्य सम्मान के साथ पालन करता है। यही कारण है बोहरा समाज में सर्वत्र सम्पन्नता नजर आती है। भारत के हर शहर में बोहरा समाज के अतिथि गृह बने हुए मिल जायेंगे जिनमें बोहरा समाज के हर वर्ग के लोग जाकर रूक सकते हैं। इन अतिथि गृहों में निःशुल्क भोजन एवं आवास की व्यवस्था होती है।

पवार समाज सदस्यों में परस्पर प्रेम और आदर भावना की बेहद कमी होती है। यही कारण है मू अउर मरी माय मंढा म नी समाय की तर्ज पर वे किसी में भी सपात नहीं पाते और अंततः अपने झूठे अहम् एवं अंहकार में अपने साथ-साथ समाज का भी अहित ही करते हैं। पवारों में एक कमी और उल्लेखनीय है वह यह कि वे अपने समाज सदस्य की प्रतिभा को स्वीकारने और सम्मान देने में बेहद कृपण हैं। वे उसे स्वीकारने और सम्मानित करने की अपेक्षा उसकी टांग खींचने और उसे अपमानित करने में धरती पाताल एक करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते। यही कारण है समाज की विकास और उन्नति के षिखर पर पहुंचने की कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह उनकी अज्ञानता और अनपढ़ता ही है पर इसे वे कभी भी स्वीकारना पसंद नहीं करते। यह हठ और जिद ही पवारों का असली दुश्मन है जिसे और कोई नहीं अपितु संबंधित व्यक्ति स्वयं ही मार सकता है।      
       
हम अपनों से सीखने की बजाय उसके किए कराए पर पानी फेरने में ज्यादा रूचि लेते है। यह हद दर्जे का ईष्या, द्वेश करके हम अपने ही समाज के विकास एवं उन्नति के मार्ग में स्वयं सबसे बड़े रोड़े एवं बाधक बन बैठे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का दुनिया को संदेश देने वाले देश में ही घर परिवार में परस्पर प्रेम नहीं है ऐसे में पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाली उनकी बात बेमानी ही लगती है। पवारों का बेवकूफी भरा पराक्रम बंदर के हाथों उस्तरा लगने जैसा है।यही करण है पढ़े लिखे पवार भी पवार कम गंवार ज्यादा लगते है। उनके किसी भी उपक्रम में परिपक्वता या सम्पूर्णता जैसी कोई बात नजर नहीं आती है। उनका हर कदम अधूरेपन का अधिक और सम्पूर्णता का सीमित आभास ही कराता है। उन्हें अब यह समझना ही होगा कि समाज सदस्यों को किया गया सहयोग ही समाज के विकास एवं उन्नति की नींव रखने में सहायक होगा और उन्हें किया गया हर असहयोग समाज की कब्र खोदने में ही मदद करेगा। अब निर्णय हमें ही करना है कि हम अपने समाज सदस्य को अपेक्षित सहयोग करके समाज को विकास और उन्नति के पथ पर अग्रसर करना चाहते हैं या अपने ही समाज सदस्य को असहयोग करके हम अपने ही समाज के विकास और उन्नति को अवरूद्ध करना चाहते हैं।
                                                                                                                                -  वल्लभ डोंगरे

No comments:

Post a Comment