Sunday, February 23, 2014

सुखवाड़ा का 15 वर्षीय सार्थक सफर

सतपुड़ा संस्कृति संस्थान, भोपाल द्वारा ”सुखवाड़ा” का नियमित प्रकाषन समाज सदस्यों के सुख-दुख को परस्पर एक दूसरे से बांटने के उद्देष्य से दिसम्बर 1999 से प्रारंभ किया गया था। और सुखवाड़ा 15 वर्षों से अपना कत्र्तव्य बखूबी निभाता आ रहा है।

गाॅव गाॅव व शहर शहर में इसके अंकों का पाठकों को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। पहले-पहल सुखवाड़ा त्रैमासिकी  निकलता रहा। बाद में इसकी बढ़ती माॅंग और इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे मासिक कर दिया गया। यह देष, विदेष में जाने वाला समाज का एकमात्र मासिक है। यही नहीं, यह देष की राजधानी से लेकर सुदूर अंचल तक अपनी पहुॅंच बनाने वाला और पढ़ा जाने वाला समाज का एकमात्र मासिक है।

समय के साथ इसे ई पत्रिका का स्वरूप भी प्रदान कर समाज सदस्यों के ई मेल पर प्रतिमाह इसे उपलब्ध कराया जाता है।इसके प्रति लोगों का रूझान बढ़ने का एकमात्र कारण यह है कि यह नियमित प्रकाषित होता है और इसमें प्रकाषित जानकारी समाजोपयोगी एवं दुर्लभ होती है। गाॅव व शहर में निवासरत समाज सदस्यों के मोबा. न.ं, विवाह योग्य सदस्यों की जानकारी, रीति-रिवाज, मुहावरें एवं लोकोक्ति, पहेलियाॅं, विवाह गीत, समाजोपयोगी लेख व समाज के इतिहास पर जानकारी  के साथ-साथ वर्तमान संदर्भ में उसके महत्व पर तर्कसंगत और शोधपरक जानकारी एक साथ इसके माध्यम से पाठकों को उपलब्ध कराई जाती है।

सतपुड़ा संस्कृति संस्थान, भोपाल के माध्यम से समाज के लगभग 1,500 जोड़े परिणय सूत्र में बॅंधे हैं, पत्रों व फोन पर प्रदत्त विज्ञापनों की जानकारी के माध्यम से आवेदन कर 50 से ज्यादा सदस्य शासकीय सेवाओं में सेवारत हैं,लगभग 50,000 से ज्यादा सदस्य पूरे भारत भर में रह रहे समाज सदस्यों के पते, फोन ,मोबा. न.ं से सुख-दुख के अवसरों पर परस्पर सम्पर्क करके लाभाविंत हुए है,भोपाल में अध्ययनरत गरीब बच्चों का षिक्षण शुल्क भरने में मदद करके उनकी आगे की पढ़ाई को जारी रखने के हरसंभव प्रयास किये गये हैं, इस कार्य में समाज सदस्यों द्वारा भी भरपूर सहयोग प्राप्त करने में सफल हुए हैं,मंडीदीप के मंदिर निर्माण में मनोबल बढ़ाने और सम्मानजनक अर्थ जुटाने में सफल हुए हंै,समाजोपयोगी साहित्य का प्रकाषन कर अपनी संस्कृति, अपने रीति-रिवाज,अपनी धरोहर को संजोने-संवारने और आगे बढ़ाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हंेंै और हमें खुषी है कि इन सब प्रयासों में आप सब हमारे साथ हैं।

सुखवाड़ा को इस स्वरूप तक पहुॅचाने में जिन समाज सदस्यों का मुख्य योगदान रहा है उनमें श्री श्यामकांत पवार, श्री अविनाष बारंगे, श्री दिनेष डोंगरदिये, श्री बी एल देषमुख, श्री हरीष कोड़ले, डाॅ आर एन घागरे, श्री राजेष बारंगे,श्री चन्द्रकांत पवार,श्री गुलाबराव देषमुख,श्री वासुदेव भादे,श्री बीडी टोपले,श्री पी आर बारंगे, श्री के एल परिहार,श्री पी एल बारंगे, श्री अषोक डहारे, श्री एसएम खवसे, श्री गुलाब बोवाड़े, श्री एस डी धारपुरे, श्री एम आर पवार, डाॅ कुलेन्द्र कालभोर,डाॅ हेमलता डहारे,श्री निर्मल बोवाड़े,श्री राधेष्याम देषमुख, श्री विजय कड़वे, श्री ब्रजमोहन हजारे, श्री सुदामा बोबड़े, श्री गेंदूलाल पवार, श्री शामराव कोरडे  भोपाल, श्री बलराम बारंगे डहुआ, श्री गणेष पवार, श्री यादोराव पवार पालाचैरई, स्व. श्री सुदरलाल देषमुख, श्री संजय पठाड़े, श्री एनएल पवार दीप, श्री अनिल पवार श्री रामचरण देषमुख, श्री मुन्नालाल बारंगा,श्री शंकर पवार, मुलताई, स्व. श्री चन्द्रषेखर बारंगा, श्री उदल पवार, श्री कन्हैयालाल बुवाड़े, श्री अविनाष देषमुख, डाॅ अषोक बारंगा,श्री किसनलाल बुवाड़े,श्री शंकर पवार बैतूल, श्री अखिलेष परिहार ,श्री  कमल पवार श्री अजय पवार, बैतूलबाजार, श्री विट्ठलनारायण चैधरी, श्री सुरेष देषमुख, श्री ज्ञानेष्वर टेंभरे, श्री दिलीप कालभोर नागपुर, श्री संजय देषमुख,श्री तानबाजी बारंगे, श्री संतोष कौषिक, श्री रमेष धारपुरे,पांढुर्णा, श्री रामदास घागरे,दाड़ीमेटा श्री पी बी पराड़कर सिवनी, श्री एनआर पवार होषंगाबाद, श्री बलराम डहारे, श्री कृष्णा कड़वेकर,श्री धनष्याम कालभोर,मंडीदीप,  डाॅ श्री विजय पराड़कर छिंदवाड़ा, श्री संतोष पवार सिंगरौली, श्री नंदलाल बारंगे, श्री मधुसूदन बोबड़े जबलपुर,श्री भगवत बुवाड़े चन्द्रपुर, श्री उमेष देषमुख, अलीबाग, श्री मधु बारंगे,सारनी, श्री बी आर ढोले, श्री शंकर पवार, पाथाखेड़ा, श्री सुनील बोबड़े द्वय महू आदि प्रमुख हैं।

सृजन निर्मल कार्य है पर यह निर्मम होता है।सर्जक कई मौत मरकर सृजन करता है। यह मौत कई बार बाहरी ताकतों से और कई बार अंदरूनी ताकतों से होती है। सृजन के लिए सर्जक को कई बार अपने प्रति भी निर्मम होना पड़ता है जिससे उसके अपने प्रियजन भी उसकी निर्ममता का षिकार हुए बिना नहीं रह सकते। मेरी पत्नी गीता डोंगरे एवं पुत्र विभांषु डोंगरे इसका अपवाद नहीं हंै। उन्हंे कई बार मेरे दायित्वों का निर्वहन भी करना पड़ा है। और न चाहकर भी लोगों से ऐसी बातें सुनना पड़ी है जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उन्हें यह पहली बार आभास हुआ कि अच्छे काम भी लोंगों को अच्छे नहीं लगते। परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि यदि आप अच्छा काम करते हैं तो आपको सहयोग और सम्मान भी अच्छा मिलता है और जीवन सफल व सार्थक हो जाता है। खैर, इसके प्रकाषन में कई ज्ञात और अज्ञात सदस्यों का समर्पण और त्याग रहा है जिसके बिना अब तक की यात्रा संभव नहीं थी। जिन सदस्यों के नाम यहाॅं भूलवष नहीं लिये जा सके वास्तव में वे किसी मंदिर के नींव केे पत्थर की भांति महत्वपूर्ण हैं जिनके बिना न तो मदिर बन सकता था न ही कंगूरा इठला सकता था। उन सभी ज्ञात-अज्ञात सहयोगियों के प्रति मेरा सादर नमन्।

वल्लभ डोंगरे,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान,भोपाल

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